Saturday, January 3, 2009

ग़ज़ल

ज़ात, मज़हब, मुल्क़, सरहद
सब इन्सां की ईजाद हैं

रंग एक सबकी रग़ों में
क्या दुश्मन, क्या एह्बाब हैं

रखें तो फ़लसफ़ा है ज़िन्दगी का
भुला दें तो चन्द अल्फ़ाज़ हैं

न बांधा किन्ही दायरों ने मुझे
दायरों की दुनिया में इफ़रात हैं

-विवेक मिश्रा (इस ग़ज़ल का अंग्रेज़ी रूपांतरण पढने के लिये 'रूपांतरण' पर क्लिक करें)

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