ज़ात, मज़हब, मुल्क़, सरहद
सब इन्सां की ईजाद हैं
रंग एक सबकी रग़ों में
क्या दुश्मन, क्या एह्बाब हैं
रखें तो फ़लसफ़ा है ज़िन्दगी का
भुला दें तो चन्द अल्फ़ाज़ हैं
न बांधा किन्ही दायरों ने मुझे
दायरों की दुनिया में इफ़रात हैं
-विवेक मिश्रा (इस ग़ज़ल का अंग्रेज़ी रूपांतरण पढने के लिये 'रूपांतरण' पर क्लिक करें)
Saturday, January 3, 2009
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