Saturday, January 3, 2009

ग़ज़ल

अश्क़ आ जाते हैं आँखों में शाम ढलती है
याद आती है तेरी जैसे ही शमा जलती है

दिल में रहती है तेरी याद और ख़याल तेरा
न चैन आता है न आह ही निकलती है

बांधे रहता हूँ कलाई में मुहब्बत की घड़ी
वक़्त यादों की हरारत से वो बदलती है

जो है प्यार का मारा, उसे मरा न कहो
कोई देखे तो सही नब्ज़ मेरी चलती है

तू अगर साथ नहीं तो तेरी याद सनम
शाम होते ही मेरे लॉन में टहलती है

-विवेक मिश्रा (इस ग़ज़ल का अंग्रेज़ी रूपांतरण पढने के लिये 'रूपांतरण' पर क्लिक करें)

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